रुपया। रुपया के शुरूआत का एक अच्छा इतिहास है। जिसने दुनिया भर में अपनी अच्छी पहचान बनाई। रूपया भारत ही नही बल्कि पाकिस्तान, श्री लंका, नेपाल, मॉरीशस आदि देशों में भी चलन में है। मुद्रा को रुपया नाम दिया गया है। ज्ञात हो कि दुनिया भर में मुद्राओं का नाम अलग-अलग तरह से जाना जाता है। अमेरिका में डॉलर, जापान में ऐन तथा अरब में दीनार तो भारत समेत कई देशों में मुद्रा को रुपया कहते हैं। लेकिन कंम लोगों को पता होगा कि भारत में रुपया नाम कब और किसने दिया था।
संस्कृत शब्द से बना रुपया
रुपया शब्द संस्कृत के रूप या रुप्याह से लिया गया है। इसका अर्थ है कच्ची चांदी और रुप्यकम का मतलब होता है चांदी का सिक्का। इतिहास में पहली बार व्यवस्थित ढंग से चांदी के सिक्के की शुरुआत शेरशाह सूरी ने अपने शासन में किए थें और शेरशाह सूरी मुद्रा को रुपया कहा। शेरशाह सूरी शासन काल में जो रुपया चलता था वह चांदी का सिक्का था और इसका वजन 178 ग्रेन था। शेरशाह सूरी ने तांबे और सोने का सिक्का चलवाया। बाद में मुगलों के शासनकाल से लेकर अंग्रेजों के शासनकाल तक इन सिक्कों का चलन रहा। उस जमाने में एक मोहर के बदले में चांदी के 16 सिक्के देने पड़ते थे और शेरशाह सूरी के शासनकाल में चलाए गए चांदी के रुपया का खूब चलन में रहा। जिसमें गोला कर एवं वर्गाकार दोनों तरह के सिक्के चलन में रहें।
अंग्रेजों ने शुरू किया कागज के रुपए
जानकारी के तहत 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने रूप्यों को गुलाम भारत की ऑफिशियल मुद्रा बना दिया और 19वीं सदीं की शुरुआत में ही अंग्रेजों ने कागजी रुपए की शुरुआत कर दिए। 1861 के पेपर कर्रेंसी एक्ट में अंग्रेजों ने भारत में बड़े स्तर पर मुद्रा छापने का एकाधिकार ले लिया। तो वही आजाद भारत में आरबीआई अधिनियम 1934 के तहत मुद्रा जारी की जाती है।