भोपाल। मध्य प्रदेश में वर्ष 2002 के प्रमोशन नियम के तहत पदोन्नत हुए हजारों सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों पर डिमोशन (पदावनति) की आशंका बनी हुई है। दरअसल, हाई कोर्ट ने अप्रैल 2016 में इन नियमों को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया था। इसके चलते अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों ने 2002 के नियम से प्रमोशन पाए कर्मचारियों को डिमोट करने की मांग की। उनका तर्क था कि प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के ‘एम. नागराज’ फैसले के अनुरूप लागू नहीं की गई थी।
हालांकि राज्य सरकार इस मुद्दे पर कोई कड़ा कदम नहीं उठाना चाहती थी, इसलिए हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम निर्णय तक यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए हैं। अब जबकि राज्य सरकार ने नए प्रमोशन नियमों को कैबिनेट से मंजूरी दिला दी है, वह सुप्रीम कोर्ट से आग्रह करेगी कि पुराने नियमों के तहत हुई पदोन्नतियों को वैध मानते हुए मामला समाप्त कर दिया जाए।
इधर, सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था (सपाक्स) ने मांग की है कि अनारक्षित वर्ग के साथ हुए अन्याय को दूर करने के लिए गलत तरीके से पदोन्नत कर्मचारियों को डिमोट किया जाए, तभी नए नियम पर सहमति संभव है।
वहीं, सामान्य प्रशासन विभाग का कहना है कि चूंकि तब पदोन्नति उपलब्ध नियमों के तहत हुई थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया जाएगा कि याचिका को समाप्त किया जाए। यदि ऐसा हुआ, तो 2002 के नियम से पदोन्नत सभी कर्मचारियों को राहत मिल सकती है।