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देवशयनी एकादशी को इस समय करें भगवान विष्णु की पूजा, मिलेगा मनवांछित फल

By Harshit Shukla

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नई दिल्ली। सनातन धर्म में  देवशयनी एकादशी उन व्रतों में से एक माना जाता है जिसका पुण्य मनुष्य के सारे पापों को हर लेता है। यह व्रत भगवान विष्णु को अतिप्रिय है इसलिए इस दिन माता लक्ष्मी सहित इनकी पूजा का विधान है।  देवशयनी एकादशी के दिन व्रत व्रत रखने से व्रती को मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही भगवान विष्णु की कृपा भी मिलती है। इस बार यह व्रत 17 जुलाई को रखा जायेगा । 

देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु 4 माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। अगर इसे सामान्य बोल चाल की भाषा कहें तो भगवान विष्णु शयन करने चले जातें हैं इसी दिन से चातुर्मास शुरू हो रहा है जिसके बाद सभी मांगलिक कार्य चार महीने तक बंद रहेंगे

तो चलिए जानते हैं वो कौन कौन से शुभ महूर्त है जिनमे पूजा करने से भगवान अति प्रसन्न होते है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, देवशयनी एकादशी के दिन शुभ योग, शुक्ल योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग के साथ अनुराधा नक्षत्र का सुंदर संयोग बना है।  

1. शुभ योग:               प्रात:काल से लेकर सुबह 07:05am तक
2. शुक्ल योग:             सुबह 07:05am से 18 जुलाई को 06:13am तक
3. सर्वार्थ सिद्धि योग:  सुबह 05:34am से 18 जुलाई को 03:13am  तक
4. अमृत सिद्धि योग:   सुबह 05:34 बजे से 18 जुलाई को 03:13 बजे तक
5. अनुराधा नक्षत्र:      प्रात काल से लेकर 18 जुलाई को 03:13am तक

देवशयनी एकादशी 2024 मुहूर्त और पारण समय

आषाढ़ शुक्ल एकादशी ति​थि का शुभारंभ: 16 जुलाई, मंगलवार, रात 08 बजकर 33 मिनट से
आषाढ़ शुक्ल एकादशी ति​थि का समापन: 17 जुलाई, बुधवार, रात 09 बजकर 02 मिनट पर
विष्णु पूजा का शुभ मुहूर्त: प्रात: 05:34am से
देवशयनी एकादशी पारण समय: 18 जुलाई, प्रात: 05:35am  से 08:20 am तक
पारण के दिन द्वादशी का समापन: रात 08 बजकर 44 मिनट परर

भगवान विष्णु स्तुति

अगर व्रती को भगवान विष्णु की विशेष अनुकंपा चाहिए तो उन्हें नीचे दी गई स्तुति से भगवान की पूजा करनी चाहिए:

शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥

यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे: ।
सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा: ।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो
यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम: ॥

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