नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को मणिपुर को लेकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि मणिपुर एक वर्ष से शांति की राह देख रहा है। प्राथमिकता से उस पर विचार करना होगा। पिछले साल तीन मई को मैतई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में कुकी समुदाय ने आदिवासी एकजुटता मार्च आयोजित किया था। जिसके बाद भड़की जातीय हिंसा में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। भागवत ने कहा, ‘मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है। उससे पहले यह 10 साल तक शांतिपूर्ण रहा। ऐसा लग रहा था कि पुरानी बंदूक संस्कृति समाप्त हो गई है। अचानक वहां पर तनाव पैदा हुआ या पैदा किया गया, उसकी आग में अभी भी जल रहा है इसे प्राथमिकता देना और इस पर ध्यान देना कर्तव्य है।’
‘हम प्रकृति के विजेता नहीं, उसका हिस्सा हैं’
उन्होंने कहा, इस साल पिछले वर्षों से बहुत अधिक गर्मी हुई। पहाड़ी इलाकों में भी हुई। बंगलूरू जैसे महानगर में जल का संकट आ गया। ग्लेशियरों के पिघलने के बारे में तरह-तरह की बातें समाचार पत्र में छप रही हैं। पर्यावरण का सारी दुनिया पर संकट है। भारत जो संस्कारों से ही पर्यावरण का मित्र बनकर चलता है। नदियों, वृक्षों, पहाड़ों, पशुओं या पक्षियों को पूजता है। उनके साथ अपना संबंध मानता है। वहां भी यह संकट खड़ा हुआ है, क्योंकि विकास का विजन अधूरा है। उसको बदलना होगा, सबको बदलना होगा। लेकिन जिसके पास यह विजन पहले से है, वह भारत अपने आपको कैसे बदलता है। यह देखने के लिए दुनिया उसका अनुसरण करने वाली है। हमें खुद से अपने विकास का रास्ता तय करना है। हमें बहुत सी बातों को साथ लेकर चलना पड़ेगा। हम प्रकृति के विजेता नहीं है, हम उसका हिस्सा हैं। हमें इसके पालन-पोषण का ध्यान रखना होगा। हमें इसके अनुरूप अपने विकास के मानक तय करने होंगे।
‘समस्याओं पर करना होगा विचार’
उन्होंने कहा कि चुनाव सहमति बनाने की प्रक्रिया है। संसद में किसी भी सवाल के दोनों पहलू सामने आए, इसीलिए ऐसी व्यवस्था है। चुनाव प्रचार में एक-दूसरे को लताड़ना, तकनीक का दुरुपयोग, झूठ प्रसारित करना ठीक नहीं है। विरोधी की जगह प्रतिपक्ष कहना चाहिए। उन्होंने कहा, चुनाव के आवेश से मुक्त होकर देश के सामने मौजूद समस्याओं पर विचार करना होगा।