
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को एक जमानत याचिका पर दिए गए फैसले को लेकर कड़ी फटकार लगाई है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हाईकोर्ट कानून के अनुसार नहीं, बल्कि अपनी मर्जी से नए नियम बना रहा है, जो न्याय व्यवस्था के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
मामला एक ऐसे आरोपी से जुड़ा है, जिसकी जेब से कथित तौर पर संदिग्ध नोट बरामद हुए थे। आरोपी ने जमानत की अर्जी लगाई थी, जिसे हाईकोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जब तक वह अपनी आधी सजा पूरी नहीं करता, उसे जमानत नहीं मिल सकती। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी ने अपने बचाव में कोई ठोस सफाई नहीं दी है।
इस पर नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ – जस्टिस अभय ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुयान ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “हमें देखकर हैरानी हुई कि हाईकोर्ट ने खुद का कानून बना लिया है। जब अपील लंबित हो और जल्द सुनवाई की संभावना न हो, तो आरोपी को जमानत दी जा सकती है।”
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को स्पष्ट संदेश दिया कि न्यायपालिका का काम कानून के दायरे में रहकर निर्णय देना है, न कि अपनी नई शर्तें गढ़ना। यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था में जमानत के अधिकार को लेकर एक अहम उदाहरण बनकर उभरा है, जो ‘बेल इज़ अ रूल, जेल इज़ एन एक्सेप्शन’ की अवधारणा को फिर से रेखांकित करता है।