---Advertisement---

भरण-पोषण की मांग पर कोर्ट सख्त: अनुकंपा नियुक्ति पर नहीं बनता हक”

By Harshit Shukla

Published on:

Click Now

रायपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि अनुकंपा नियुक्ति मृतक कर्मचारी की संपत्ति नहीं होती, इसलिए बहू को अपने वेतन से सास का भरण-पोषण देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह फैसला बिलासपुर हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस सचिन सिंह राजपूत शामिल थे, ने सुनाया।

यह मामला एसईसीएल हसदेव के दिवंगत कर्मचारी भगवान दास से जुड़ा है, जिनकी मृत्यु वर्ष 2000 में हुई थी। इसके बाद उनके बड़े बेटे ओंकार को अनुकंपा नियुक्ति दी गई। कुछ वर्षों बाद ओंकार की भी मृत्यु हो गई, जिसके बाद उसकी पत्नी (बहू) को केंद्रीय अस्पताल, मनेंद्रगढ़ में अनुकंपा पर नौकरी मिली।

ओंकार की मां (सास) ने इसके बाद मनेंद्रगढ़ की पारिवारिक अदालत में बहू से 20 हजार रुपये मासिक भरण-पोषण की मांग की। सास ने तर्क दिया कि वह 68 वर्ष की हैं, बीमार रहती हैं और मात्र 800 रुपये पेंशन में गुजारा नहीं हो रहा है। इस पर पारिवारिक न्यायालय ने बहू को 10 हजार रुपये मासिक देने का आदेश दिया।

बहू ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि वह केवल 26 हजार रुपये वेतन पाती हैं और अपनी 6 वर्षीय बेटी की देखभाल कर रही हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सास को 3 हजार रुपये मासिक पेंशन मिलती है, उन्हें पति के बीमा से 7 लाख रुपये मिले हैं, और खेती से सालाना एक लाख रुपये की आमदनी होती है। साथ ही, उनका दूसरा बेटा उमेश 50 हजार रुपये माह वेतन पाता है और देखभाल करता है।

हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद पारिवारिक अदालत का आदेश रद्द कर दिया और कहा कि अनुकंपा नियुक्ति मृतक की सेवा के एवज में दी जाती है, संपत्ति नहीं मानी जा सकती।

Follow On WhatsApp
Follow On Telegram
---Advertisement---

Leave a Comment