रायपुर। बिलासपुर स्थित छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (सिम्स) की बदहाल व्यवस्था को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में स्वतः संज्ञान से चल रही जनहित याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बी.डी. गुरु की डिवीजन बेंच ने गंदगी, अव्यवस्था और इलाज की कमी पर कड़ा रुख अपनाते हुए सिम्स प्रबंधन, डीन, जिला कलेक्टर और चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव को शपथपत्र दाखिल कर जवाब देने के निर्देश दिए हैं।
अदालत को जानकारी दी गई कि छात्रावास परिसर में छात्र पॉलिथिन में रखा खाना बाहर फेंक रहे हैं, जिससे गंदगी फैल रही है। इस पर कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि यह स्थिति बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इससे यह स्पष्ट होता है कि शासन और प्रबंधन की लापरवाही के कारण ही ऐसी स्थिति बनी है।
महाधिवक्ता पी.के. भारत ने दलील दी कि मेस में अच्छा भोजन तैयार किया जाता है, लेकिन छात्र बाहर से खाना मंगवाकर फेंक देते हैं। कोर्ट ने इस पर भी असंतोष जताया और कहा कि किसी भी हालत में परिसर में गंदगी की अनुमति नहीं दी जा सकती।
सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि सिम्स डीन के पास 95 लाख रुपये का फंड उपलब्ध है, जो दवाओं और संसाधनों की खरीद के लिए उपयोग किया जा सकता है, लेकिन इसके बावजूद मरीजों को समुचित इलाज नहीं मिल रहा है। कोर्ट ने सवाल उठाया कि फंड का उपयोग क्यों नहीं हो रहा।
अदालत ने निर्देश दिए कि अगली सुनवाई से पूर्व सभी संबंधित अधिकारी यह स्पष्ट करें कि गंदगी की रोकथाम, फंड उपयोग और मरीजों को बेहतर चिकित्सा सुविधा देने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं। अगली सुनवाई 18 अगस्त को होगी।