नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने 5 अक्टूबर को अपने संबोधन में हिंदू समाज से एकजुट होने और आपसी मतभेदों को दूर करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि भाषा, जाति और प्रांत के विवादों को समाप्त करके समाज को एकजुट होना होगा। भागवत ने जोर दिया कि समाज में अनुशासन, राज्य के प्रति कर्तव्य और लक्ष्य-उन्मुख होने का गुण आवश्यक है। उनका मानना है कि एक समृद्ध और सामंजस्यपूर्ण समाज का निर्माण व्यक्तिगत और सामाजिक जिम्मेदारियों के निर्वहन से ही संभव है।
भागवत ने आरएसएस के कार्य की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संघ का काम यांत्रिक नहीं है, बल्कि विचारों और संस्कारों पर आधारित है। उन्होंने कहा कि संघ के माध्यम से संस्कारों का विकास पहले समूह के नेता में, फिर स्वयंसेवकों में और अंततः परिवार और समाज में होता है।
उन्होंने “भारत एक हिंदू राष्ट्र” के विचार को दोहराया और कहा कि हिंदू सभी को अपना मानते हैं और सबको स्वीकार करते हैं। उनका संदेश था कि हिंदू समाज को एक-दूसरे से संवाद और सद्भावना के साथ मिलकर रहना चाहिए। भागवत ने समाज के विभिन्न मुद्दों जैसे सामाजिक समरसता, न्याय, शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वावलंबन पर जोर दिया, और संघ के स्वयंसेवकों को समाज में इन क्षेत्रों में सुधार लाने के लिए काम करने का आह्वान किया।