नई दिल्ली। मौजूदा केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए उस 58 साल पुराने प्रतिबंध को हटा दिया है जिसमे कहा गया था कि कोई भी सरकारी कर्मचारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में भाग नहीं ले सकता। इस प्रतिबंध के हटने के बाद सरकारी कर्मचारी स्वतंत्र है वो आरएसएस किसी भी कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं। वहीं विपक्षी दल सरकार के इस कदम का काफी विरोध कर रहे हैं।
आपको बता दें कि सरकार ने अपने आदेश में कहा है कि ‘उपर्युक्त निर्देशों की समीक्षा की गई है और यह निर्णय लिया गया है कि 30 नवंबर 1966, 25 जुलाई 1970 और 28 अक्टूबर 1980 के संबंधित कार्यालय ज्ञापनों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उल्लेख हटा दिया जाए।
ओवैसी ने किया विरोध
सरकार के इस फैसले के बाद एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ऑफिस मेमोरेंडम शेयर करते हुए कहा कि सरकार के इस फैसले से पता चलता कि आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर से प्रतिबंध हटा दिया है। यदि यह सत्य है तो यह भारत की अखंडता और एकता के विरुद्ध है। आरएसएस पर प्रतिबंध इसलिए है क्योंकि उसने मूल रूप से संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। प्रत्येक आरएसएस सदस्य शपथ लेता है कि वह हिंदुत्व को राष्ट्र से ऊपर रखता है। कोई भी सिविल सेवक यदि आरएसएस का सदस्य है तो वह राष्ट्र के प्रति वफादार नहीं हो सकता।
कांग्रेस ने भी दर्ज कराया विरोध
कांग्रेस ने सरकार के फैसले का पुरजोर विरोध किया है। कांग्रेस ने फैसले की तीखी आलोचना की है। कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने X पर एक पोस्ट में लिखा कि गांधीजी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था। अब 58 साल का प्रतिबंध हटा दिया गया है । मेरा मानना है कि नौकरशाही अब निक्कर में भी आ सकती है।