रायपुर। महानदी जल विवाद को लेकर छत्तीसगढ़ और ओडिशा सरकारों के बीच अब सकारात्मक पहल की शुरुआत हो चुकी है। हाल ही में ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने एक उच्चस्तरीय बैठक में स्पष्ट किया कि उनकी सरकार छत्तीसगढ़ के साथ आपसी बातचीत के जरिए इस दीर्घकालिक जल विवाद का समाधान चाहती है। इसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार और केंद्रीय जल आयोग (CWC) से सहयोग मांगा है, ताकि दोनों राज्यों के बीच संवाद को मजबूत किया जा सके।
छत्तीसगढ़ सरकार ने इस पहल का स्वागत करते हुए कहा है कि वह भी समान भाव से संवाद के लिए तत्पर है। चूंकि दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार है, इसलिए इसे समाधान का अनुकूल अवसर माना जा रहा है।
यह विवाद मूलतः महानदी के जल बंटवारे को लेकर है। ओडिशा का आरोप है कि छत्तीसगढ़ ने कई बांध और बैराज बनाकर हीराकुंड बांध में जल प्रवाह को कम कर दिया है, जिससे राज्य में जल संकट गहराया है। वहीं, छत्तीसगढ़ का कहना है कि वह अपने हिस्से का ही जल उपयोग कर रहा है और कोई अवैध निर्माण नहीं हुआ है।
महानदी की कुल लंबाई 885 किमी है, जिसमें से 285 किमी छत्तीसगढ़ में बहती है। इसका उद्गम सिहावा पर्वत (धमतरी) में है। रुद्री बैराज और गंगरेल बांध छत्तीसगढ़ में स्थित हैं, जबकि हीराकुंड बांध ओडिशा के संबलपुर में है।
यह विवाद 1983 से चला आ रहा है और वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। केंद्र सरकार ने समाधान के लिए महानदी जल विवाद प्राधिकरण भी गठित किया है। अब दोनों मुख्यमंत्रियों की पहल से उम्मीद है कि संवाद के माध्यम से इस विवाद का शांतिपूर्ण समाधान निकलेगा और क्षेत्रीय विकास को नई दिशा मिलेगी।