रायपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एनआईए कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले को सही ठहराते हुए नक्सली हमलों को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बताया है। हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस मामले में दोषियों की अपील को खारिज कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविंद्र अग्रवाल की बेंच ने कहा कि नक्सली हमले केवल आपराधिक कृत्य नहीं, बल्कि राज्य को अस्थिर करने की सोची-समझी साजिश का हिस्सा हैं। कोर्ट ने इस आधार पर एनआईए कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
2014 ताहकवाड़ा हमला: बड़ा नक्सली हमला
यह मामला 11 मार्च 2014 को सुकमा जिले के ताहकवाड़ा गांव में हुए हमले से जुड़ा है, जहां सड़क निर्माण कार्य की सुरक्षा में तैनात सीआरपीएफ और पुलिसकर्मियों पर नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया था। इस हमले में कई जवान शहीद हुए थे और नक्सलियों ने उनके हथियार लूट लिए थे।
अभियोजन पक्ष ने दिए ठोस साक्ष्य
अदालत ने अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूतों को मजबूत माना। अभियोजन पक्ष ने यह साबित किया कि आरोपी हमले की योजना बनाने वाली बैठकों में शामिल थे। कोर्ट ने माना कि षड्यंत्र प्रायः गुप्त रूप से रचे जाते हैं और प्रत्यक्ष साक्ष्य मिलना कठिन होता है।
एनआईए कोर्ट ने सुनाई थी आजीवन कारावास की सजा
इस मामले में एनआईए ने जांच के बाद आरोपियों पर हत्या, साजिश और गैरकानूनी गतिविधियों के तहत मुकदमा दर्ज किया था। जगदलपुर स्थित एनआईए कोर्ट ने कवासी जोगा, दयाराम बघेल, मनीराम कोर्राम और महादेव नाग को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
नक्सली हमलों पर हाई कोर्ट की चिंता
हाई कोर्ट ने कहा कि नक्सलियों की पहचान और गिरफ्तारी चुनौतीपूर्ण होती है, क्योंकि वे छद्म नामों का उपयोग करते हैं और ग्रामीण अक्सर गवाही देने से बचते हैं। अदालत ने कहा कि ऐसे संगठित हमलों से निपटने के लिए सख्त कार्रवाई जरूरी है।