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अपने अद्भुत स्वरूप से दुनिया को मोहित करने वाला सफेद बाघ मोहन, आज 27 मई 1951 को बघेलखंड की भू-धरा में पाया गया था

By Viresh Singh

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रीवा। बघेलखंड की राजधानी रीवा की पहचान व्हाइट टाइगर की भू-धरा के रूप में भी होती है क्योंकि दुनिया का पहला सफेद भाग बघेलखंड में पाया गया था। जानकारी के तहत दुनिया के सबसे पहले सफेद बाघ मोहन को 27 मई 1951 में सीधी जिले के बरगढ़ी के पंखोरा के जंगल में पकड़ा गया था। उसकी मौत 18 दिसंबर 1969 को हुई थी। दुनिया भर में आज जितने भी सफेद बाघ हैं वह इसी बाघ मोहन की संतान हैं।

सफेद स्वरूप में पाया गया था शावक

जानकारी के तहत सीधी जिले के कुसमी के जंगल में या अद्भुत वन्य प्राणी सफेद शावक के रूप में पाया गया था। इस मोहनी स्वरूप वाले बाघ के बच्चे को रीवा महाराज स्व. मार्तण्ड सिंह जूदेव रीवा लेकर आए और प्रकृति से परिपूर्ण रीवा के गोबिंदगढ़ के किले में सफेद बाघ के शावक का लालन-पालन पूरे राजसी ठाट-बाट के साथ किया था। उसकी मोहिनी स्वरूप को देखते हुए उन्होंने उसका नाम मोहन रखा था।

मोहन की हुई 34 संताने

आज पूरी दुनिया में जहां भी सफेद शेर दिखाई देते हैं, वह इसी सफेद शेर मोहन की संतानें हैं. रीवा महाराज मार्तंड सिंह ने मोहन को गोविंदगढ़ के किले में रखा. तीन बाघिन बेगम, राधा और सुकेसी के साथ मोहन को अलग-अलग समय में रखा गया। जिनसे मोहन की कुल 34 संतानें हुईं जिसमें से 21 सफेद थीं। बेगम ने 7 बच्चों को जन्म दिया, राधा ने सर्वाधिक 14 और सुकेसी ने 13 बच्चों को जन्म दिया।
मोहन की पहली संतान के रूप में सफेद शेर मोहिनी, सुकेसी, राजा और रानी पैदा हुए थे. मोहन की अंतिम संतान मोहन और सुकेसी के बच्चों के रूप में चमेली और विराट पैदा हुए. तत्कालीन महाराजा मार्तंड सिंह ने चमेली को दिल्ली के चिड़ियाघर में दे दिया था. वहीं विराट की मौत गोविंदगढ़ के किले में हो गई थी। इसी के साथ रीवा में सफेद शेरों की पहचान भी खत्म हो गई, जिसे बदलते वक्त के साथ दोबारा जिंदा किया गया, ’व्हाइट टाइगर सफारी’ के रूप में. रीवा-सतना की सीमा क्षेत्र मुकुंदपुर में बनाई गई अब यंहा रीवा की पहचान सफेद बाघ की दहाड़ सुनाई देती है और पर्यटक सफेद बाघ का दीदर कर पा रहे है।

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